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शायद ज़िन्दगी बदल रही है !!
जब मैं छोटा था , शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी ..
मुझे याद है मेरे घर से " स्कूल " तक का वो रास्ता , क्या क्या नहीं था
वहां , चाट के ठेले , जलेबी की दुकान , बर्फ के गोले , सब कुछ ,
अब वहां " मोबाइल शॉप ", " विडियो पार्लर " हैं , फिर भी सब सूना है ..
शायद अब दुनिया सिमट रही है ...
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जब मैं छोटा था , शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी .
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे , घंटो उडा करता था , वो लम्बी " साइकिल रेस ",
वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक के चूर हो जाना ,
अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है .
शायद वक्त सिमट रहा है ..
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जब मैं छोटा था , शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी ,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना , वो दोस्तों के घर का खाना , वो लड़कियों की
बातें , वो साथ रोना , अब भी मेरे कई दोस्त हैं ,
पर दोस्ती जाने कहाँ है , जब भी " ट्रेफिक सिग्नल " पे मिलते हैं " हाई " करते
हैं , और अपने अपने रास्ते चल देते हैं ,
होली , दिवाली , जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं ..
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जब मैं छोटा था , तब खेल भी अजीब हुआ करते थे ,
छुपन छुपाई , लंगडी टांग , पोषम पा , कट थे केक , टिप्पी टीपी टाप .
अब इन्टरनेट , ऑफिस , हिल्म्स , से फुर्सत ही नहीं मिलती ..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है .
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जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है .. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है .
" मंजिल तो यही थी , बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
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जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है .
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं .
अब बच गए इस पल मैं ..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं ..
इस जिंदगी को जियो न की काटो!!!!!!!!!!